विगत कुछ समय से सचिन को भारत रत्न दिए जाने की मांग ऐसे की जा रही है जैसे उन्होंने अपनी देश सेवा से गांधी, नेहरु, आम्बेडकर, पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, टैगोर, गोखले, भगत सिंह, विवेकानंद, कलाम, कृषि वैज्ञानिकों, इसरो डी आर डी ओ के वैज्ञानिकों श्रेष्ठ चिकित्सकों तक को पीछे छोड़ दिया है.
भारत में क्रिकेट एक ऐसी राष्ट्रीय समस्या है कि इसके बारे में कुछ भी बोलना आसान नहीं है. विचारों पर भावना, सोच पर ग्लैमर, चिंतन पर नशा इस कदर हावी है कि हम विरोध तो दूर असहमति से शुतुरमुर्ग की तरह मुंह छुपाते है. प्रश्न यह है कि आखिर सचिन ने भारत के लिए किया ही क्या है या भारत को दिया ही क्या है कि उनको देश का रत्न मान लिया जाए? केवल चंद देशों के साथ एक खेल में रन बना लेना ही क्या किसी को भारत रत्न के योग्य बना देता है?
यह क्रिकेट के खिलाडी न केवल प्रत्येक मैच खेलने के लिए मोटी रकम पाते हैं बल्कि पूरी देह, कपड़ों, बल्ले में अनेक कंपनियों के नाम चिपकाये कार्टून बने करोड़ों रूपये कमाते है. इसके अलावा टेलीविजन पर अनेक विज्ञापनों से सालाना करोड़ों रूपये भी कमाते हैं जिसमें शराब की कंपनी भी शामिल हैं.
इन खिलाडियों के लिए देश नहीं पैसा महत्त्वपूर्ण होता है. पैसे के लिए ही यह IPL BPL CPL DPL किसी भी टीम में नीलामी द्वारा खरीदे जा सकते हैं जहाँ पैसे के लिए धोनी सचिन को स्टंप कर सकते हैं तो सहवाग द्रविड़ को कैच आउट कर सकते हैं.
यह खिलाडी पैसे के लिए सब कुछ बेचते बेचते एक दिन स्वयं भी बिकाऊ सामान (Saleable Item) बन जाते हैं और बाज़ार में बिकने लगते हैं.
अगर इनको किसी राष्ट्रीय समारोह में बुलाया जाये और दूसरी ओर कोई और पैसे का कार्यक्रम हो तो यह वहां जाना पसंद करेंगे. टाइम्स ऑफ इण्डिया में समाचार छपा था कि १८ जुलाई को भारतीय उच्चायोग ने एक समारोह में भारतीय क्रिकेट टीम के शामिल न होने कि शिकायत की थी.
अक्सर यह बात चर्चा में आती रहती है कि भारत के जिस भी इलाके में कोल्ड ड्रिंक के प्लांट लगते हैं वहां का भूजल स्तर बहुत तेजी से नीचे जाता है. यह क्रिकेट खिलाडी कोल्ड ड्रिंक को बेचने में सबसे आगे रहते है. सारे मैच में भी कोल्ड ड्रिंक कंपनी ही छाई रहती है. बल्कि यह कहा जा सकता है की हमारे देश में क्रिकेट के खिलाडी व फिल्म स्टार की ही वजह से कोल्ड ड्रिंक बिकती है. अगर क्रिकेट से कोल्ड ड्रिंक को हटा दिया जाये तो इनकी बिक्री बहुत कम हो जाएगी. वास्तव में क्रिकेट और यह तथाकथित देशभक्त खिलाडी देश में कोल्ड ड्रिंक व बाज़ार के सामान बेचने का जरिया बन गए हैं.
मित्रों क्या यह हमारा दायित्व नहीं की हम भेड़ चाल से परे देश हित में खुले दिमाग से सोचें? आखिर कौन हमें गुलाम बनाये रखना चाहता है? आँख दिमाग बंद कर जूनून में चिल्लाने से किसका भला हो रहा है किसके हित सध रहे हैं? आखिर हम कोई पेय पदार्थ आँख बंद कर क्यों पियें?
वास्तव में क्रिकेट को जूनून बना दिया गया है. पहले तो मैच कम होते थे अब पूरे साल ही टेस्ट मैच, वन डे, 20 -20, IPL BPL CPL DPL आदि मैच होते रहते हैं और देश का युवा वर्ग देश की समस्याएं, अपनी परीक्षाएं, अपना कैरियर भूल कर इस नशे में खोया रहता है.
इसके अलावा हमारा देश बिजली की तंगी व समस्या से जूझ रहा है. एक ओर बिजली के अभाव में ऑपरेशन टल जाते हैं, खेतों में सिंचाई का पानी नहीं पंहुच पाता है, बच्चे पढ़ नहीं पाते हैं, वहीँ दूसरी ओर रात में स्टेडियम में लाखों रूपये की बिजली एक दिन में फूँक कर क्रिकेट का तमाशा होता है जिसे देखने के लिए लोग घरों में टेलीविजन में लाखों की बिजली एक दिन में फूँक देते हैं. इसे ही कहते हैं अंधेर नगरी चौपट राजा, जब रोम जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था, कुएं में भांग, मस्तराम मस्ती में आग लगे बस्ती में, घर फूँक तमाशा देखना आदि. अगर कार्ल मार्क्स की भाषा में कहा जाये की क्रिकेट अफीम है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. अगर हम कुछ साल क्रिकेट को सीमित कर दें तो बिजली पानी की समस्या कुछ हद तक सुधर सकती है. इंग्लॅण्ड व उसके शासन के अधीन रहे चंद ऐसे देशों में ही क्रिकेट लोकप्रिय है जहाँ अभी भी गुलाम मानसिकता प्रभावी है. अन्य तरक्कीपसंद देशों में क्रिकेट का जूनून नहीं है.
इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है कि मीडिया, विशेषकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया अपने उत्तरदायित्व को भूल कर क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने में आँख मूँद कर शामिल है. उसके लिए राष्ट्रीय समस्या से बड़ी समस्या यह है कि ऐसा न हो कि कहीं दूसरे चैनेल की TRP हमसे ज्यादा न हो जाये. उसके लिए समाचार मात्र बिकाऊ सामान (Saleable Item) से अधिक नहीं. ऐसा नहीं कि सारे चैनेल ऐसे हैं कुछ अपने दायित्व को समझते हैं मगर अधिकांश इस भेडचाल में शामिल है.
इस प्रकार अगर देखा जाये तो सचिन ही भूमिका इतनी ही है कि इन्होंने क्रिकेट की, विज्ञापन कंपनियों की ही सेवा की है और इसके माध्यम से अरबों रूपये कमाए हैं. इसके अलावा इनका देश के प्रति कार्य, समर्पण शून्य है.
जहां करोड़ों लोग एक समय भोजन को तरसते हों, साफ़ पानी के अभाव में लाखों लोग बीमार रहते हों, बच्चे गर्भवती स्त्रियाँ कुपोषण का शिकार हों, बचपन गरीबी के कारण अशिक्षा बालश्रम से ग्रसित हो वहां सपनों की अफीम, कोल्ड ड्रिंक का जहर, क्रिकेट के नाम पर जुनून भरी अकर्मण्यता बेच कर अपनी जेब में अरबों रूपये ले आना कौन सा ऐसा विशिष्ट, अद्वितीय या अतुलनीय कार्य है की क्रिकेट के किसी खिलाडी को भारत का रत्न या सपूत होने का तमगा दिया जाये?
अगर इनको पुरस्कृत करना बहुत बहुत जरूरी हो तो "क्रिकेट रत्न" "विज्ञापन रत्न" "रन रत्न" "रुपया रत्न" "बिक्री रत्न" "कोल्ड ड्रिंक रत्न" जैसे पुरस्कार दिए जा सकते हैं.
"भारत रत्न" तो सदियों में पैदा होते हैं जो अपना पूरा जीवन भारत की सेवा के लिए न्योछावर कर देते हैं. उनका जीवन दूसरों के लिए मिसाल बन जाता है और आने वाली पीढियां, बच्चे उनका अनुसरण कर देश को आगे बढ़ाने में अपना जीवन अर्पित कर देते हैं. सचिन जैसे खिलाडियों से बेहतर है की भारत रत्न उस किसान को दिया जाये जिसने अपना पसीना बहा कर हमें अनाज दिया है, जिस मजदूर ने सड़कें और मकान बनाये हैं, जिस चिकित्सक ने अमूल्य सेवा की है, जिस जांबाज सैनिक ने देश के लिए अपने प्राण दिए हैं, जिस वैज्ञानिक ने नयी खोज की है, जिस शिक्षक ने नयी पीढ़ी को निस्वार्थ भाव से तैयार किया है आदि.
इसलिए सचिन को भारत रत्न देने की मांग अतार्किक व देश के हित में नहीं कही जा सकती.
मैं यह नहीं कहता मैं ही सही हूँ मगर कम से कम इस मुद्दे पर एक बात तो की ही जा सकती है. आप अपना चश्मा उतार कर निष्पक्ष और निरपेक्ष रूप से सोचें तो क्या सही है?
आप की राय पक्ष में हो या विपक्ष में, आप सहमत हों या असहमत पर भावनाओं से परे, तार्किक, संतुलित व विचारात्मक टिप्पणियों का स्वागत है.