सबसे पहले मैं यह स्पष्ट कर देना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ कि न तो मैं किसी के समर्थन में हूँ ना विरोध में. मैं तो बस आपको मंथन, चिंतन करने के लिए कुछ सूत्र दे रहा हूँ.
जन लोकपाल के अन्ना हजारे को मिले अभूतपूर्व जनसमर्थन से यह लगने लगा कि चंद सरकारी बाबुओं और हुक्मरानों के अलावा सारा का सारा हिंदुस्तान भ्रष्टाचारमुक्त है. जबकि वास्तविकता इससे कहीं अधिक गंभीर और भयावह है. क्या जितने लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लगा रहे हैं, विशेषकर युवा, उन्होंने इस बात को सुनिश्चित कर लिया है कि उनके घर रिश्वत, टैक्स चोरी से मुक्त हैं?
कितने युवा इस बात को जानते है या कि यह उनके लिए चिंता का विषय है या इस बात को अपने माता पिता से पूछने का साहस कर सकते है कि कही आप भ्रष्टाचार में लिप्त तो नहीं? अगर वे व्यापारी है तो टैक्स की चोरी तो नहीं करते?
कितने युवा इस बात को जानते है या कि यह उनके लिए चिंता का विषय है या इस बात को अपने माता पिता से पूछने का साहस कर सकते है कि कही आप भ्रष्टाचार में लिप्त तो नहीं? अगर वे व्यापारी है तो टैक्स की चोरी तो नहीं करते?
दरअसल जो भी लोग कैमरे में उत्साह में नारे लगाते, तिरंगा लहराते या नाचते कूदते दिख रहे हैं वो दशहरे के उल्लास में मगन हैं. उनके लिए बुराइयों से लड़ने का मतलब बस रावण का पुतला जला देना है मगर वो कभी अपने अन्दर छिपे रावण को नहीं देखते. भ्रष्टाचार से मुक्ति या लड़ाई का अर्थ इतना ही तो है कि हम हाथ में मोमबत्ती लेकर या नारे लगाकर खुश हो लें कि अब सरकारी दफ्तर में रिश्वत नहीं देनी होगी. लेकिन इस खुशनुमा तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि आम आदमी अन्दर से भ्रष्ट है और वो भ्रष्टाचार में सुविधा चाहता है और सुविधा में भ्रष्टाचार. दरअसल इस भ्रष्टाचार रुपी सिक्के के दो पहलू है.
जब हम अपना जायज काम करवाने सरकारी विभाग जाये तो हमसे रिश्वत न मांगी जाये पर दूसरा पहलू यह कि जब हम टैक्स, जुर्माने, बिल आदि कि चोरी करना चाहें तो हमें ऐसे कर्मचारी मिल जाएँ जो भ्रष्ट हों और पैसा लेकर हमारी चोरी में सहयोग करे. यह कैसे संभव है?
आखिर वो कौन लोग हैं जो-
1- बिजली विभाग के कर्मचारियों से मिलीभगत कराकर मीटर धीमा कराते है या कुछ पैसे दे कर उपयोग की गयी बिजली से कम का बिल जमा कराते है. छोटे लोग तो कटिया लगाकर चोरी के लिए बदनाम हैं जो केवल बल्ब जलाते है मगर यह लोग तो ए० सी०, दुकानें और फैक्ट्री तक चोरी की बिजली से चलाते हैं.
1- बिजली विभाग के कर्मचारियों से मिलीभगत कराकर मीटर धीमा कराते है या कुछ पैसे दे कर उपयोग की गयी बिजली से कम का बिल जमा कराते है. छोटे लोग तो कटिया लगाकर चोरी के लिए बदनाम हैं जो केवल बल्ब जलाते है मगर यह लोग तो ए० सी०, दुकानें और फैक्ट्री तक चोरी की बिजली से चलाते हैं.
2- जब मकान या दुकान का हॉउस टैक्स जमा करना हो तो नगर निगम, म्युनिसिपल कारपोरेशन में ऐसे भ्रष्ट कर्मचारी की तलाश करते है जो ले दे कर बहुत कम टैक्स जमा कराएं. जिससे नगर निगम, म्युनिसिपल कारपोरेशन भले ही घाटा उठायें मगर हम फायदे में रहें.
3- बाजार जाते समय अपने वाहन केवल निर्धारित पार्किंग में ही खड़े करे और क्या हममें इतना साहस है कि अगर नो पार्किंग में वाहन खड़े करने पर चालान हो तो जुर्माने की रकम अदा कर दें. मगर नहीं हम या तो कहीं ऊपर से फोन करवाएंगे कि धौंस में हमारा वाहन छूट जाये. वाह री चोरी और सीनाजोरी. अगर ऐसा न हो सका तो कोशिश करेंगे कि जुर्माने के 500 रुपये देने के बजाये सिपाही 50 रूपये लेकर वाहन छोड़ दे. हम सरकारी खजाने में 500 रुपये जुरमाना अदा करने के बजाये 50 रूपये लेने के लिए आधा घंटा सिपाही की चिरौरी कर सकते है पर नारे भ्रष्टाचार के खिलाफ लगायेंगे? वाह रे दोहरा चरित्र?
4- ऐसे ही जब हम बैंक में या रेलवे में रिज़र्वेशन कराने जायेंगे तो चाहेंगे कि कोई परिचित अन्दर जाकर बिना लाइन लगाये काम करा दे. लाइन में लगे शरीफ आदमियों को परेशानी हो तो मेरी बला से.
5- इसी तरह व्यापारी लोग बिक्री कर, व्यापार कर, आयकर आदि की चोरी के लिए दोहरी बिल बुक बनवा लेंगे, इन विभागों में भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ढूँढ कर ख़ुशी ख़ुशी रिश्वत देकर गलत काम करा लेंगे, गलत नक्शा पास कराकर और रिश्वत देकर गलत तरीके से अपनी दुकान, काम्प्लेक्स, मकान आदि बनवायेंगे पर कहेंगे सरकारी दफ्तरों में बहुत भ्रष्टाचार है. यह कैसी दोगली नीति है?
6- क्या इस आन्दोलन में जो युवा भाग ले रहे है वे रेल या बस में हमेशा सही टिकट लेकर चलते है? परीक्षाओं में अनुचित साधनों का प्रयोग नहीं करते?
दरअसल चन्द पैसे बचाने के लिए किसी को रिश्वत दे देना हमें सबसे आसान काम लगता है. हमें यह समझना होगा कि जीवन में क्षुद्र लाभ या क्षणिक आसानी के लिए शोर्ट कट्स अपनाने वाले कभी भ्रष्टाचार के विरोधी नहीं हो सकते. वास्तव में वे भी भ्रष्ट व्यस्था के पोषक और समर्थक हैं. यह समस्या ठीक वैसी ही है कि यदि हम दहेज़ ले रहे है तो ठीक पर यदि देना पड़े तो गलत. आखिर दोहरे चरित्र का जीवन जीकर हम किसको धोखा दे रहे है? समाज को या अपनी अंतरात्मा को?
दरअसल चन्द पैसे बचाने के लिए किसी को रिश्वत दे देना हमें सबसे आसान काम लगता है. हमें यह समझना होगा कि जीवन में क्षुद्र लाभ या क्षणिक आसानी के लिए शोर्ट कट्स अपनाने वाले कभी भ्रष्टाचार के विरोधी नहीं हो सकते. वास्तव में वे भी भ्रष्ट व्यस्था के पोषक और समर्थक हैं. यह समस्या ठीक वैसी ही है कि यदि हम दहेज़ ले रहे है तो ठीक पर यदि देना पड़े तो गलत. आखिर दोहरे चरित्र का जीवन जीकर हम किसको धोखा दे रहे है? समाज को या अपनी अंतरात्मा को?
सारे देशवासियों विशेषकर युवाओं को यह बात समझ लेनी चाहिए कि हम अपने आचरण, विचारों में परिवर्तन लाकर ही सामाजिक परिवर्तन की बात करने के लायक हो सकते हैं. इसके अलावा प्राईवेट चिकित्सकों द्वारा कमीशन के लिए फालतू की जांचें लिखना, दवा कंपनियों को उपकृत करने के लिए अनावश्यक दवाएं लिखना, दुकानदारों द्वारा कम सामान तौलना मिलावटी सामान बेचना, शिक्षकों द्वारा निष्ठा से न पढ़ाना कोचिंग हेतु बाध्य करना भी भ्रष्टाचार है.
वास्तव में भ्रष्टाचार से मुक्ति दृढ इच्छाशक्ति से ही संभव है जब हम यह ठान लें कि न तो गलत काम करेंगे न ही करवाएंगे.
टैक्स हो या जुर्माना राजकोष में सही सही जमा करेंगे.
भले ही ए० सी० के बजाये कूलर या पंखे का प्रयोग करना पड़े, व्यापार छोटा हो जाए पर बिजली की चोरी नहीं करेंगे और पूरा बिल समय से अदा करेंगे.
घर में सादा खाना खा लेंगे बच्चों को साधारण स्कूल में पढ़ा लेंगे पर रिश्वत का पैसा घर में नहीं लायेंगे.
आइये हम सब अपने चरित्र व देश के निर्माण व उत्थान के लिए सच्चे मन से भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प लें.
जय हिंद.
मैं भी उन नौजवानों से पूछना चाहती हूँ कि आज के उच्च शिक्षा के फीस को अभिभावक कहाँ से और कैसे अदा करते है ? क्या ये सवाल अपने घर से कर सकते हैं
ReplyDelete? ईमानदारी से...
अमृता जी मैं आपका अभिनन्दन करता हु पर आपकी बातों से मैं सहमत नहीं हु क्यों की आप ये सवाल नहीं उठा सकती की उच्च शिक्ष्या के लिए जो फ़ीस देनी पड़ती है वो कहा से अति है वो तो हर इन्सान का कर्तव्य है की वो अपने बच्चों को उच्च शिक्ष्या दे ये सवाल हर कोई अपने परिवार वालों से नहीं अपने आप से करे तबी उस को पता चलेगा की हम लोग कहा तक सही है
ReplyDeleteक्या उन बचो का कर्तव्य नहीं है की वो अपने पिता माता बाई बंधू को कह सके की ये गलत है में मानता हु की असा होता है पर १ फ़ीस पे आपका सवाल उठाना गलत है
दिनेश जी ब्लॉग पर आने के लिए आभार.
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी तो अमृता जी को प्रत्युत्तर है. कृपया मेरी बात पर भी कुछ कहे.
वैसे "हर इन्सान का कर्तव्य है की वो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दे"
आपकी इस बात पर कहना चाहूँगा कि बच्चो की उच्च शिक्षा का बहाना या किसी भी पारिवारिक जिम्मेदारी का बहाना किसी को अपराध करने अनैतिक काम करने की छूट नहीं देता. हमारे हर कार्य नैतिक कमाई के बजट में सीमित होने चाहिए.
भौतिकवादी समय पैसे के स्रोत की शुद्धता के बारे में नहीं सोचता पर यह सत्य है की आप अनैतिक नाजायज कमाई से न तो बच्चो का भविष्य बना सकते है और न ही यह समाज के व्यापक हित के अनुकूल ही होगा.
मैं आपकी बात से सहमत हूँ की भ्रष्टाचार किसी बिल के आ जाने से दूर नही होगा.और नहीं नारे लगाने से,हर किसी को अपने अन्दर झांकना होगा.
ReplyDeleteअगर हम देना पसंद नही है तो हमें लेने का भी हक नही है.
पर यह भी क्या सही होगा की बच्चे अपने पिता से पूछें की आप कहाँ तक और कितने भ्रष्ट हैं..
ये तो उन सभी माता पिता का को सोचना है कीवो जिस पैसे से अपनी नीव का निर्माण कर रहे हैं
,वो कितनी ईमानदारी का है,क्यूंकि अगर नीवं भ्रष्टाचार से बना है तो उसका मकान भ्रष्टाचार मुक्त कैसे होगा.
ये सच है की अब आत्म-मंथन की बारी है.
आपकी लेख बहुत अच्छी है.आप मेरे ब्लॉग पर आये और अपने अमूल्य विचार व्यक्त किये,
आपका धन्यवाद्.
mere blog par aane ke liye bahut dhanyawaad.
ReplyDeletebahut sahi sawaal uthaya hai aapne aur upyukt sujhaav bhi diya hai. dohra charitra hin to hamein aur hamare desh ko khokhla kar raha hai. jo dusre keliye sahi nahin apne liye sahi ho jata, aur ye maansikta hum sabki hai. aaj har ek vyakti bhrashtaachar mein lipt hai wajah chaahe jo bhi ho aur tareeka chaahe jo bhi ho. lokpal bill bhale paas ho jaaye lekin bhrashtachaar isase khatm hoga mumkin nahin hai. bhrashtachar ke viruddh aandolan karne wale bhi hum hin hain, bhrashtaachaar karne wale bhi hum hin hai, aur sarkaar banane wale bhi hum hin hain. bas khud ko badalne ki zaroorat hai, pura samaj aur fir pura desh badal jaayega.
shubhkaamnaayen.
Thanks for your visit to my blog.
ReplyDeleteVery true explanation of current situation.One must true in self then only we can expect change to come.But it very sad now a days , being a truthful , honest good people are suffering because the ratio of such good non-corrupt people are less.Why we need some Anna Hazare like people because always there will be a medium to bring change...We all are good just need to think about it and follow the path of goodness... Human can be good or bad its just what he wants for him , for the society and for the country.
भाई स्वतंत्र नागरिक जी.... भ्रष्टाचार से कोई भी अछुता नहीं है. यह सत्य है. लेकिन यह ठीक है और इसका विरोध नहीं होना चाहिए यह अटीटयूड बहुत खतरनाक है. ऐसे में तो आप कोई भी आन्दोलन खड़ा ही नहीं कर सकते. बहुत सतही विश्लेषण है आपका. लाखो मजदूरों की सोचिये तो न्यूनतम वेतन से और दो जून की रोटी से महरूम हैं.... सड़क पानी बिजली से दूर हैं...आप शहर से निकल कर गाँव की ओर चलिए जिसके हिस्से की आप खा रहे हैं....
ReplyDeleteमैं अन्ना के अनशन पर बिलकुल विश्वास नहीं करता हूँ पर अन्ना पर थोड़ा बहुत करता हूँ ओर मैं सीना ठोंक कर कहता हूँ की बिना लाइसेन्स के मोटर साइकिल चलाने के अलावा मेने आज तक कोई करप्शन नहीं किया है न मेरे पिता जी ने किया है ना मेरे दादा जी ने किया है मेरी शिक्षा का खर्च मेरे पिताजी ने ही उठाया था मेने कभी नकल नहीं की ,पेपर मे जो आता है उतना ही किया क्लासे जम कर बैंक मारी है
ReplyDeleteकिसी दूसरे से पुछने की जगह हम खुद से अगर कुछ भी पुछे तो शायद हमे जवाब मिल जाए
ReplyDeleteसर्वप्रथम समस्त अतिथियों का आभार.
ReplyDeleteमै आप लोगो को इसलिए भी धन्यवाद दूंगा कि आपने इस विश्वास की रक्षा की कि ब्लॉग जैसे माध्यम पर सार्थक और गंभीर विमर्श संभव है.
अरुण जी आपने यह कैसे समझ लिया कि मै भ्रष्टाचार का विरोध नहीं करने की बात कर रहा हूँ. मै तो स्वयं भ्रष्टाचार का प्रबल विरोधी और सीमित साधनों में गुजर बसर करे में विश्वास रखने और करने वाला नागरिक हूँ.
मेरा मात्र इतना कहना है कि किसी बात का सड़क पर विरोध करना तो अच्छा और बहुत आसान है पर क्या बेहतर नहीं होगा की हम अपने आचरण में भी सुधार लाये?
एक कथा है. ईसा मसीह एक गाँव से गुजर रहे थे जहाँ भीड़ थी. पता चला की एक महिला को पत्थर मार कर जान से मार देने कार्यक्रम था. उन्होंने कहा ठीक है पहला पत्थर वो मारे जिसने कभी अपराध न किया हो. सबके सिर झुक गए और वे पत्थर मारे बिना लौट गए.
यही घटना कलियुग में भी हुई.
एक महिला को पत्थर मार कर जान से मार देने कार्यक्रम था. किसी ने कहा ठीक है पहला पत्थर वो मारे जिसने कभी अपराध न किया हो. फिर क्या था हर आदमी आगे बढ़ कर पत्थर मारने लगा जिससे कोई यह न समझे कि मैंने कभी अपराध न किया है.
प्रत्येक ईमानदार और नैतिक व्यक्ति ऐसे आंदोलनों को समर्थन देता है और यह सही भी है. मैंने तो मात्र आन्दोलन में हिस्सा लेने वालो का सम्मुख आईने की तरह एक प्रश्न रखा है ताकि वो अपनी छवि देख सके.
Dr. shabnam and harpreet ji
ReplyDeletethanks for not only comments but for the support too.
i am just talking about self appraisal, self evaluation in the light of this historical movement. it is very easy to come on the streets for any issue but we must have courage to face the mirror of conscious to see where we stand.
i and i think everybody who is honest, is with, not only such movements but follows the path of anti corruption in life too.
thanks again.
अभिषेक आपको विशेष धन्यवाद कि आपने न केवल इस आलेख की भावना को समझा बल्कि आप और आपका परिवार गर्व के साथ कह सकता है कि आप सब भ्रष्टाचार के विरुद्ध है.
ReplyDeleteइस आलेख का उद्देश्य यह भी है कि भ्रष्टाचार के बारे में एक सा तो हर कही लिखा जा रहा है तो मनन चिंतन के लिए कुछ ऐसे मुद्दे भी कहे जाये जो हाशिये पर है.
अन्ना के अनशन पर आपको इसलिए विश्वास करना चाहिए कि इस आन्दोलन ने भारतीयों के सोये मन को झकझोरा है और हम कुछ सोचने को विवश हुए. आज आम आदमी भी इस मुद्दे पर सोच तो रहा है.
"किसी दूसरे से पुछने की जगह हम खुद से अगर कुछ भी पुछे तो शायद हमे जवाब मिल जाए" यही तो करना है. ऐसे युवा पर देश भरोसा कर सकता है.
कृपया "सचिन को भारत रत्न क्यों?" भी पढ़िए. युवाओं के लिए आवश्यक है.
सवाल बिल्कुल ठीक हैं ....
ReplyDeleteजवाब के लिए ...अपने गिरेबां में ही झांकना होगा ...???
शुभकामनायें!
२७ अगस्त २०११ ९:१० अपराह्न
सही विवेचना है...
ReplyDeleteभ्रष्टाचार के परनाले का उद्गम तो ‘मैं’ ही हूँ...
जब तक ‘मैं’ स्वयं इस पर रोक नहीं लगाऊंगा यह कैसे रुकेगा...?
आज अन्ना ने एक जागरूकता पैदा की है सारे देश में...
यही समय है कि हम अपना ही गिरेबान पकडें
और पूछें अपने आप से... आखिर क्यूँ?
यह सही समय है आत्म विश्लेषण का...
भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण का...
जयहिंद.
आपकी बात से सहमत हूँ ..आत्ममंथन भी जरूरी है.
ReplyDeleteहम खुद से अगर कुछ पुछे तो शायद हमे जवाब मिल जाए .....
ReplyDeleteमैंने भारत में पहली बार इतने बड़ी संख्या में लोगो को 1 साथ 1 आवाज में अहिंसक आन्दोलन देखने को मिलना किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं है! भ्रस्ताचार के खिलाफ श्री अन्ना जी के इस आन्दोलन में लेकिन एक बात तो है की श्री अन्नाजी ने महात्मा गाँधी जी के पद चिन्हों पर चलकर लोगो के मन में यह तो बात जगा ही दी है की अभी भी महात्मा गाँधीजी की तरह और भी लोग है जो देश के लिए कुछ भी करने को तत्पर है...
ReplyDeleteजन लोकपाल के पहले चरण की सफलता पर आप सभी को बहुत बहुत बधाई.
आपको इस जीत की 'बधाई एवं शुभकामनाये..सवाई सिंह राजपुरोहित
. 1 ब्लॉग सबका ...
aap ki baaten aur bhavna bilkul sahi hai
ReplyDelete"sab se pahle apne andar kee kami ko dhoondh len "
isi ki zaroorat zyaadaa hai ,aandolan zaroori tha hamen jagane ke liye lekin ham jagen to sirf sarkar ke liye nahin swayam ke liye bhi jaagna hoga ,jab tak aatmsudhar ki bat nahin hogi koi parivartan sambhav nahin hai ,
main ap ke vicharon se sahmat hoon
is bebak aalekh ke liye badhai
kyonki
"kar nahin pate hain himmat jhooth se inkar ki "
lekin ap men ye himmat hai
राजपुरोहित जी आपका आभार आगमन और टिप्पणी के लिए.आपको भी बधाई.
ReplyDeleteज़ैदी जी शुक्रिया कि न केवल आप तशरीफ़ लाये बल्कि इत्तेफाक़ ज़ाहिर कर हौसला दिया. दरअसल जबसे हमने आईने का मुक़ाबला करना छोड़ दिया है तबसे हम सच से दूर होते जा रहे है. किसी जुलूस का हिस्सा बनना, तक़रीर करना तो बहुत आसान है लेकिन इन सबसे मुश्किल है अपनी बुराइयों को समझना और उनसे निजात पाना.
हमने जाने कितनी बार बचपन में गया है-
हम को मन की शक्ति देना मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें.
कितनी खूबसूरती से से कहा गया है. बस जरूरत है तो इस जज्बे को इरादों की शक्ल देने की, इन अल्फाज़ पर अमल करने की पुरज़ोर कोशिश करने की. शुक्रिया.
आप सही हैं! वस्तुतः स्वयं से प्रश्न करने से लोग घबराते हैं और उत्तर स्वयं से प्रश्न करने वाले को ही मिलता है!
ReplyDeleteआम व्यक्ति के अन्दर छुपा भ्रष्टाचारी रावण जब तक नहीं निकलेगा तब तक समाज नहीं बदलेगा. साथ ही आवश्यकता है काननी बदलाव की जिसमें विभिन्न स्तर बने हैं जिनका काम ही रुकावट डालना और पैसे बनाना है.
ReplyDeleteपूरी तरह सहमत. सचमुच मानों त्यौहार ही था, रावण मार कर जश्न मनाने जैसा.
ReplyDeleteआप सभी का धन्यवाद आने और टिप्पणी करने के लिए.
ReplyDeleteएक स्वतन्त्र नागरिक जी, आपने अपने लेख में बिल्कुल सही लिखा है हम लोग दोहरा चरित्र अपना कर भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लगा रहे........आपने जो उपरोक्त वर्णन दिए है वह असली जिंदगी में बिल्कुल सत्य है...............
ReplyDeleteअगर ऐसे ही रहेगा तो लोकपाल बिल पास भी हो जाये तो भ्रष्टाचार कभी खत्म नहीं होगा.
वैसे भी सरकार तो लोकपाल बिल पास करेगी भी नहीं......लेकिन 5% इस बात को मान भी लिया जाये की अगर सरकार लोकपाल बिल पास कर भी देगी तो हमारे अपने चरित्र से इस देश में कभी भी भ्रष्ट्राचार खत्म ही नहीं होगा..................